Tuesday, August 21, 2012

Past postings from my diaries




18 श्रावण 79 (1957)


हम तभीतक कमज़ोर और निर्बल हैं जब तक हमारे अदंर यह भावना है कि हम कमज़ोर हैं. जिस दिन आत्महीनता की यह भावना समाप्त हो जाएगीहम भी पूर्णरूपेण बली हो जाएंगे। अपने अदंर से यह भावना निकाल फेंको कि तुम कमज़ोर हो- तुममे किसी कार्य विषेष को करने की शक्ती नही है, स्वंय को संक्षम और द्रढ़ निश्चयी महसूस करो, यह विचार करो कि तुम और भी अधिक द्रढ़ निश्चयी होते जारहे हो, कमज़ोरियां तुम्हे हरा नही सकतीं। फिर देखो कि अपनी कमज़ोरियों से अंर्तद्वंद करते हुए कितना आनंद आता है। प्रत्येक विजय पर कितना आत्म संतोष और प्रफुल्लता होती है, वह स्वर्गिक आनंद व्यक्त करने की नही स्वंय अनूभूत करने की चीज़ है। द्रढ़ निश्चय और पूर्ण लगन के सामने तो एकबार तो स्वंय भगवान को भी झुकना पड़ेगा।

-- आस्तिक, नास्तिक और स्वास्तिक ---– दुनिया मे मनुष्यों की तीन श्रेणियां की जा सकती हैं। मै तो स्वास्तिक ही बनना चाहता हूं।
वृथा ज़िन्दगी यदि जीवन मे सदा सफलता ही पाई।
   छोड़ो उसको जिस उपवन मे सदा बहारें ही छाईं।।
     विफल बांसुरी यदि मिलन की तान छेड़ती रही सदा।
        हार जीत के दो सुरवाली  लो बजी जीवनी शहनाई।।