परिवर्तन
अपने घुटे घुटे कमरे के,
दरवाजों और खिड़कियों को
मैने
और भी कस कर
बंद
कर लिया, और बल्ब पर
रंगीन कागज़ लपेट कर कहा,
मेरे का रंग पीला है, हवा मे
सीलन है, फर्श कुछ गीला है।
दीवालों पर प्लास्टर नही है
पर, हां मकड़ी के जाले हैं।
सिगरेट का धुआं है और,
कुछ टूटे हुए प्याले हैं।।
यानि कि मेरे सपनो पर
मेरी हर एक ख़ुशी पर
किस्मत
के ताले हैं ।
पर तभी मेरी बेटी ने कहा
पापा ज़रा खिड़की तो खोलो.
नयी हवा को तो आने दो
किरणों को मुस्कराने दो,
ज़रा सूरज से तो बोलने दो।
इस कमरे के बाहर भी तो,
इतनी बड़ी खुली दुनिया है,
बाग़ हैं, उपवन हैं, फूल हैं
तितलियां हैं, कोयल है, तोता है
कमरे के बाहर ही यह सब कुछ होता
है।।
कमरे मे तो न जाने कब से बंद हो
चलो पापा, ज़रा बाहर निकलें, कुछ घूम आएं।।
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