कौन ?
खट खट खट खट,
कौन है
व्दार पर ?
प्रियतमा तुम्हारी ।
हा ȿ हा ȿ हा ȿ
यह नीरस जीवन एकाकी
बहुत कठिन है, बहुत जटिल है।
नहीं रूपसी लौट जाओ तुम।
'' प्रियतम मेरे, बस दो पल----''
इस कठोर जीवन के
पथ पर
साथ निभाया
किसने पल भर ?
जो भी आया बोझ
बटाने थोढ़ी
पीड़ा और बढ़ी
दी। अब तो जीवन
का यह
व्दार बंद है चिर काल तक ।
''मेरे अपने समझो मुझको
आस नही
है किसी चाह की,
मै आई
हूं प्यार निभाने जीवन
की इस
कंटीली राह पर। जब भी
होगे तुम निराश या कुछ उदास,
भर दूंगी मधुरिमा ह्रदय मे
सिन्चित हो अधरामृत से
बढ़ना आगे। जब भी थक
जाओ तुम
जीवन की संग्राम मे।
आजाना मेरी बाहों मे थोड़ा सो
लेना, फिर उठकर नये जोश से
आजाना
जीवन के इस संर्घष मे।''
ओह कैसा था नशीला शैथिल्य जो
प्राण को भी मानो
उसने सुलाया
चाह कर भी मै हा
कुछ कर न पाया।
और आज ? ?
निर्वासित
हूं मै अपने ही राज्य मे।
वह दो पल की याचक बैठी है
अधिकार जमाकर पूरे
मानस पर।
कहीं न कोइ किरण
पहुंच पाये अंदर,
या न कहीं आलोक
ज्ञान का आजाए। इसीलिये
तो सांपिन कृष्णा
बैठी है फैला कर अपनी पांखे,
मानो तम की
चादर मे चांद सितारे टके हुए हों ।
और मै सम्राट खड़ा हूं बेबस,
याचक
सा अपने ही राज्य मे ।
ACHCHHEE KAVITAAON KE LIYE AAPKO BADHAAEE AUR
ReplyDeleteSHUBH KAMNA .